देही तो कपाल का करही गोपाल

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देही तो कपाल का करही गोपाल बहुत पहले की बात है। एक ब्राह्मण और एक भाट में गहरी दोस्ती थी। रोज़ शाम को दोनों मिलते थे और सुख-दुख की बाते कहते ...

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